मंगलवार, दिसंबर 29, 2020






घोर अंधेरा था, दूर दूर तक सन्नाटा, हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था। ऐसे अंधेरे में चमक रही थी, दो आंखें। और गूंज रही हैं भयंकर आवाज ।  यह आंखें और आवाज है किसकी। चलिए हम आवाज के और करीब चलते हैं, हम काफी नजदीक आ चुके हैं। अरे यह तो जंगल का राजा शेर हैं, मगर यह यहां कैसे, अरे यह तो पिंजरे में है। 

अरे जंगल के राजा, तुम पिंजरें में कैसे?

निकला था शिकार पकड़ने, मगर खुद ही पकड़ा गया। ऐसा कैसे?
क्या तुम मुझे पिंजरे से नहीं निकाल सकते।
नहीं, क्योंकि मैं तो यहां नहीं हूं , मगर हां मैं किसी ओर को जोड़ता हूं। उधर देख वो ब्राह्मण, शायद वो निकाल दे। वो तो कुछ गुनगुना रहा है, 
मैं तो चला जिधर चले रस्ता, होगा कोई मेरा भी साथी....
तेरा साथी यहां है पगले, किसी ने उसे कैद कर लिया है, आके उसे छुड़ा दे।
अरे यह किसने पुकारा मुझे। अरे यह तो जंगल का राजा है।
आप यहां आए किसलिए ।
तुमने पुकारा और हम चले आए, जान हथेली पर ले आए रे।
आए हैं तो मुझे कैद से निकालिए। 
पहले पंजे अंदर डालिए। सोचता हूं कि मैं तुम्हे न 
निकालूं 
ऐसा क्या करते हो, काहे मुझसे डरते हो। मुझे अगर निकालोगे तो अभयदान भी पा लोगे।
वो तो सब ठीक है, मगर तुम्हारा क्या भरोसा, तुम मुझ पर ही हाथ साफ कर दो।
मैं वचन देता हूं, मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।
अरे ब्राह्मण देव यह क्या कर रहे हो।
चुप करो तुम, खुद तो निकालते ही नहीं किसी और को भी मना करते हो।
खुल गई कुंडी, हो गया मैं आजाद।
मगर क्या करूं, भूख लग गई मुझे सामने तुम ही हो।
करो खुश मुझे करो, भरो पेट मेरा भरो।
मगर मेरे यार, तुम्हे पिंजरे से निकाला और तुम 
अरे यार, तो मैं भी तो तुम्हें इस अस्थि पिंजर से निकाल रहा हूं, तुमने मुझे कैद से निकाला, तो मैं ऐसा कृतघ्न कैसे हो सकता हूं कि तुम्हें कैद में छोड़ दूं, मैं तुम्हे जन्मजन्मातर की कैद से मुक्त कर रहा हूं।इस संसार से आजाद।
नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकते।
मैं बिल्कुल ऐसा कर सकता हूं।
भलाई के बदले भलाई की जगह बुराई क्या  यही दुनिया की रीत है।
बिल्कुल। यही रीत है।
नहीं विश्वास हो कुछ औरों से पूछते हैं।
किसी एक ने भी यह कहा, भलाई के बदले भलाई होती है तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, मंजूर
मंजूर, चलो पूछते हैं 
और यह निकल पड़े हैं बात साबित करने
क्या होगा, क्या ब्राह्मण के प्राण बच पाएंगे या वह मारा जाएगा देखेंगे हम और आप।

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